भौगोलिक वर्णन – पी0 एम0 श्री राजकीय आदर्श इण्टर कॉलेज मातली समुद्रतल से 1158 मीटर की ऊँचाई पर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। विद्यालय के समीप साँख्ययोग के प्रवर्तक महर्षि कपिलमुनि का प्राचीन मंदिर स्थित है जिसे कपिलेश्वर महादेव सिद्धपीठ के नाम से जाना जाता है। विद्यालय आई0 टी0 बी0 पी0 12वीं वाहनी बटालियन के मध्य 1,26,400 वर्ग मीटर भूमि पर विशाल क्रीडा मैदान के साथ स्थित है। मातली की जलवायु शीतोष्ण है तथा यह चारों तरफ सुरम्य पहाड़ियों से घिरी घाटी में स्थित है।
आवागमन के साधनों का वर्णन – विद्यालय राष्ट्रीय राजमार्ग 34 पर ऋषिकेश से 150 किलोमिटर की दूरी पर स्थित है। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से विद्यालय की दूरी 7 कि0 मी0 तथा ब्लॉक मुख्यालय डुण्डा से विद्यालय की दूरी 5 कि0 मी0 है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पैट्रोल पंप मातली से विद्यालय परिसर की दूरी 200 मी0 है। विद्यालय परिसर में वाहन से पहुँचा जा सकता है। पैदल दूरी 0 कि0 मी0 है।
विद्यालय का इतिहास – पी0 एम0 श्री राजकीय आदर्श इण्टर कॉलेज मातली वर्ष 1957 में प्राथमिक विद्यालय के रूप में प्रारंभ हुआ था जो 1965 में जूनियर हाईस्कूल के रूप में उच्चीकृत हुआ, 1975 में हाईस्कूल बना तथा 1992 में राजकीय इण्टर कॉलेज के रूप में उच्चीकृत हुआ। वर्तमान में अग्रेजी व हिंदी माध्यम में पी0 एम0 श्री राजकीयआदर्श इण्टर कॉलेज मातली संचालित है।
सेवित क्षेत्र का वर्णन – विद्यालय में 12 ग्राम सभाओं से छात्र?-छात्रायें अध्ययन हेतु आते हैं जिसमें ग्राम सभा मातली, बडे़ती, अठाली, चामकोट, दिल्लीसौढ़, नाकुरी, सिंगोटी, गेंवला,पंजियाला, चिणाखोली, रतूड़ीसेरा व बौन शामिल है। वर्तमान में विद्यालय में 277 छात्र-छात्रायें अध्ययनरत है। विद्यालय एन0 सी0 सी0, एन0 एस0 एस0, स्काउट, व्यावसायिक पाठयक्रम टूरिज्म एण्ड हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट व योगा कोर्स के साथ संचालित है।
स्थानीय जैव विविधता – मातली ग्रामसभा गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के बाईं तरफ घना आबादी क्षेत्र है जबकि गंगा के दायीं तरफ घना वनाच्छादित क्षेत्र है जिसमे तुन, सीसम,बांज, डेंकन, खडीक, भीमल, चीड, ह्रिसर, किनगोड आदि वृक्षों से सम्पन्न वन है। इस वन में हिरन, काखड़, सियार, गुलदार आदि जानवर रहते हैं। गांव में अमरूद के पेड़ बहुतायत मात्रा में हैं। मातली गांव धान व गेंहू की फसल के लिये प्रसिद्ध था किंतु तीव्र आबादी बढ़ने से कृषि भूमि कम हो गई है तथा गावं ने कसबे (टाउनसिप) का रूप धारण कर लिया है।
स्थानीय विशेषता – एक किवदन्ती के अनुसार इस गांव का नाम मातली इंद्र के सारथी मातली के इस स्थान पर इंद्र का विमान उतारने के कारण उनके सम्मान में मातली रखा गया। मातली के निकट कपिलमुनि की बहन रेणुका का भव्य मंदिर है तथा सिंगोटी नामक स्थान पर भव्य महर्षि आश्रम स्थापित है। मातली इण्टर कॉलेज के निकट हैलीपैड भी स्थित है। विद्यालय में हर्वाइ मार्ग से भी आवागमन किया जा सकता है। मातली में शिव-कावड़ धर्मशाला स्थित है जिसमे तीर्थ यात्रियों के निःशुल्क विश्राम की व्यवस्था रहती है। मातली ग्राम सभा मे 15 होम स्टे व 25 होटल स्थित है जो तीर्थयात्रियों के लिये रहने की व्यवस्था तथा स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं। गांव में 11 ब्यूटी पार्लर, 1 पैट्रोलपंप तथा 3 मोटरवर्कशॉप हैं। मातली में आँचल दूध डेरी केंद्र है जहाँ से प्रतिदिन 3000 लीटर दूध की आपूर्ति की जाती है। इस संस्थान ने भी गांव के 1 दर्जन से अधिक युवाओं को रोजगार दे रखा है। गांव में 11 शिक्षण संस्थायें हैं जिनमें अजीम प्रेमजी स्कूल, पी0 एम0 श्री राजकीय आदर्श इण्टर कॉलेज मातली, हिम क्रिश्चन एकेडमी, ए0 आई0 ए0 स्कूल, रेणुका स्कूल, आदि प्रमुख हैं।
महत्वपूर्ण स्थानीय व्यक्तियों का वर्णन – विद्यालय से पढ़कर अनेकों प्रशासनिक अधिकारी,वकील, राजनैतिक नेता, उद्योगपति, निजी संस्थाओं के संचालक, अध्यापक, डॉक्टर , इंजीनियर आदि समाज एवं राष्ट्र की सेवा में अपना योगदान दे रहें हैं। जिनमें असिस्टेंट कमांडेण्ट श्री निहाल सिंह भण्डारी, गढ़वालमण्डल विकास निगम के निदेशक श्री सुधीर नौटियाल इण्टर कॉलेज आई0टी0बी0पी0 मातली कैम्पस में संचालित पी0एम0श्री0 रा0आदर्श इ0कालेज मातली के प्रधानाचार्य देवी प्रसाद नौटियाल, कन्हैया लाल नौटियाल, ए0 आई0 ए0 के संस्थापक डॉक्टर अनिल नौटियाल, टी0 एच0 डी0 सी0 के अधिसासी अभियन्ता विनोद नौटियाल तथा डी0 एस0 पी0 विरेन्द्र उनियाल आदि नाम प्रमुख हैं। विद्यालय के निकटवर्ती गांव नाकुरी में भारत की पहली महिला ऐवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल का घर स्थित है जो कि स्थानीय छात्र-छात्राओं के लिये प्रेरणा का श्रोत है। गांव में सुरेश भाई (प्रसिद्ध पर्यावरणविद) हिमालयन पर्यावरण शिक्षा संस्थान नाम से एक एन0 जी0 ओ0 संचालित करते हैं जो पर्यावरण के क्षेत्र में ग्लेशियर बचाव अभियान चला रहें हैं।
गांव की सांस्कृतिक परंपरा – गांव में स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ कपिलमुनि धाम में जलम दास नामक व्यक्ति कपिलमुनि के ढोल का पस्वा है। जिस पर कपिलमुनि भगवान अवतरित होते हैं और गांववासी अपनी समस्यायों के समाधान के लिये उनके पास जाते हैं। पस्वा स्वयं ढोल बजाता है और उसपर दैवीय शक्ति अवतरित होने से ढोल अलग-अलग मुद्राओं में मुडता है। पस्वा मुहं से कुछ नहीं बोलता किंतु कुछ विशेष ग्रामवासी ढोल की मुद्राओं से अर्थ लगाकर संबंधित व्यक्ति की संकाओं का समाधान करते हैं। घर के निर्माणकार्य, चोरी की घटना आदि के लिये आज भी गांव में देवता के ढोल से सलाह मशवरा किया जाता है। इसी प्रकार गांव में एक और गोलू देवता का मंदिर है जहां पर लोग न्याय मांगने जाते हैं। गोलू देवता न्याय का देवता कहलाता है यहां पर यह मंदिर अल्मोड़ा के चितई में स्थित प्रसिद्ध गोलू देवता के मंदिर की एक शाखा के रूप में स्थित है। उत्तरकाशी के माघ मेले में मकर संक्रान्ति के अवसर पर आसपास के सभी स्थानीय देवता गंगा स्नान के लिये उत्तरकाशी के गंगा घाट पर जाते हैं जिसमे नहाने के बाद उत्तरकाशी के स्थानीय क्षेत्रपाल कण्डार देवता के द्वारा मेले का उदघाटन किया जाता है। आज भी किसी राजनेता या अधिकारी के द्वारा मेले का उदघाटन करने पर उसे देवता के कोप भाजन का शिकार होना पडता है।हमारी जैव विविधता के संरक्षण मे आज भी हमारी सांस्कृतिक परम्परा व मान्यताओ की बडी भूमिका है व पर्यावरण संरक्षण मे आज भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है।
महत्वपूर्ण स्थानीय व्यक्तियों के साक्षात्कार – श्री जयस्वरूप बहुगुणा जिला समन्वयक गायत्री परिवार निवास मातली, श्री कमला राम सेमवाल, पुजारी कपिलमुनि मातली, जलमदास पूर्व प्रधान मातली, चमनलाल शाह पूर्व प्रधान मातली व रामलाल नौटियाल कपिलमुनि मंदिर समिति अध्यक्ष मातली।
श्रोतों का वर्णन – गढ़वाल का इतिहास – पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी, स्कंध पुराण, उत्तराखण्ड की लोक गाथायें- डा0 दिनेश चंद्र बलूनी।